30.1 C
Delhi
Thursday, March 13, 2025

नागरवाला ने इंदिरा गांधी के नाम पर SBI से ठगे 60 लाख रुपये: कहानी धोखाधड़ी की

24 मई 1971 को दिल्ली के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), मार्ग ब्रांच में एक ऐसा धोखाधड़ी मामला हुआ, जिसने बैंकिंग क्षेत्र में हड़कंप मचा दिया।

- Advertisement -spot_img
- Advertisement -

24 मई 1971 को दिल्ली के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), मार्ग ब्रांच में एक ऐसा धोखाधड़ी मामला हुआ, जिसने बैंकिंग क्षेत्र में हड़कंप मचा दिया। यह घटना तब घटी जब बैंक के चीफ कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के पास सुबह 12 बजे फोन आया। कॉल करने वाले व्यक्ति ने खुद को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव पी.एन. हक्सर बताया और कहा कि प्रधानमंत्री को बांग्लादेश के गुप्त अभियान के लिए 60 लाख रुपये की तत्काल आवश्यकता है। इसके बाद उसने निर्देश दिया कि ये रुपये संसद मार्ग स्थित बाइबल भवन के पास एक व्यक्ति को दे दिए जाएं, और नोट केवल 100 रुपये के होने चाहिए।

इस कॉल के बाद मल्होत्रा परेशान हो गए, लेकिन कॉल करने वाले व्यक्ति ने उन्हें और अधिक विश्वास दिलाने के लिए एक महिला से बात करवाई, जिसने स्वयं को इंदिरा गांधी बताया। इसके बाद, मल्होत्रा को यह कोड वर्ड भी दिए गए, “बांग्लादेश का बाबू” और जवाब में “बार एट लॉ” कहना था। मल्होत्रा ने अपने उपमुख्य कैशियर राम प्रकाश बत्रा और H.R. खन्ना से पैसे का इंतजाम किया और डिप्टी हेड कैशियर रुहेल सिंह ने पेमेंट वाउचर तैयार किया। इस प्रकार, 60 लाख रुपये की राशि बैंक से बाहर कर दी गई।

मल्होत्रा और उनका दल पैसे लेकर बाइबल भवन पहुंचे, जहां एक व्यक्ति ने उनसे कोड वर्ड लिया और फिर उन्हें सरदार पटेल मार्ग के पास एक टैक्सी स्टैंड पर भेज दिया। वहां एक व्यक्ति ने उन्हें पैसे से भरा ट्रंक दिया और कहा कि वाउचर प्रधानमंत्री निवास से लिया जा सकता है। जब मल्होत्रा ने प्रधानमंत्री निवास जाकर जांच की, तो उन्होंने पाया कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी संसद में हैं और उनका प्रधान सचिव P.N. Haksar ने यह कहा कि उन्हें कोई कॉल नहीं की गई थी। इससे यह साफ हो गया कि मल्होत्रा को ठगा गया था।

मल्होत्रा ने तुरंत पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई और जांच शुरू हुई। पुलिस ने 24 घंटे के भीतर रुस्तम सोहराब नागरवाला को दिल्ली गेट के पास पारसी धर्मशाला से गिरफ्तार किया। साथ ही, डिफेंस कॉलोनी में उसके मित्र के घर से 59 लाख 95 हजार रुपये बरामद किए गए। जांच में यह भी खुलासा हुआ कि नागरवाला भारतीय सेना में एक कैप्टन रह चुका था और रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के लिए काम कर चुका था।

नागरवाला ने अदालत में अपना अपराध कबूल किया और मई 1971 में ही उस पर मुकदमा चलाया गया। यह शायद भारत के न्यायिक इतिहास में पहला मामला था, जहां तीन दिन के भीतर किसी आरोपी को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाकर सजा सुनाई गई। नागरवाला ने कहा कि उसने बांग्लादेश अभियान के बहाने मल्होत्रा को धोखा दिया था। उसे चार साल की सश्रम कारावास की सजा और 1000 रुपये का जुर्माना हुआ। इस घटना को ‘ऑपरेशन तूफान’ के नाम से जाना गया।

इस मामले को हैंडल करने वाले एएसपी डी.के. कश्यप की सड़क हादसे में मृत्यु हो गई। वहीं, नागरवाला ने अपने जेल जीवन के दौरान मशहूर साप्ताहिक पत्रिका ‘करेंट’ के संपादक डी.एफ. कराका को एक पत्र लिखा था, जिसमें उसने उनसे इंटरव्यू देने की इच्छा जताई। हालांकि, कराका की तबियत खराब होने के कारण उन्होंने अपने असिस्टेंट को भेजा, लेकिन नागरवाला ने इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया।

फरवरी 1972 में नागरवाला को तिहाड़ जेल के अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां उसकी हालत बिगड़ी और 2 मार्च 1972 को दिल का दौरा पड़ने से उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार, एक प्रमुख धोखाधड़ी की घटना ने न केवल बैंकिंग व्यवस्था को हिलाकर रख दिया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि कैसे एक व्यक्ति अपनी चतुराई से एक संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को धोखा दे सकता है।

- Advertisement -
Latest news
- Advertisement -
Related news
- Advertisement -

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here

error: Content is protected !!