महाकुंभ 2025 में प्रयागराज में हुए भयानक स्टैम्पेड ने न केवल श्रद्धालुओं के जीवन को प्रभावित किया, बल्कि इसने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नाकामी को भी उजागर किया। 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के अवसर पर हुई इस त्रासदी में 30 से अधिक लोगों की जान चली गई, जबकि कई अन्य घायल हुए हैं। यह घटना न सिर्फ एक मानवाधिकार संकट के रूप में सामने आई, बल्कि प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
योगी आदित्यनाथ ने इस दुर्घटना के बाद एक न्यायिक जांच का आदेश दिया और मृतकों के परिवारों को मुआवजे की घोषणा की। हालांकि, सवाल उठता है कि क्या यह कदम वास्तव में जिम्मेदारी स्वीकारने का संकेत है? यह स्पष्ट रूप से देखा गया कि उनकी सरकार ने इस हादसे के दौरान सुरक्षा और प्रबंधन में गंभीर चूक की। जब इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होने वाले थे, तो प्रशासन ने इस घटना की भयावहता को समझते हुए सुरक्षा उपायों को पहले से सुनिश्चित क्यों नहीं किया?
इस हादसे के बाद, योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों के साथ बैठकें कीं और स्थिति का जायजा लिया, लेकिन उन्होंने अपनी सरकार या प्रशासन की गलती को कभी सीधे तौर पर स्वीकार नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने घटना को “हृदयविदारक” बताते हुए केवल संवेदना व्यक्त की। यह एक राजनीतिक दिखावा प्रतीत होता है, क्योंकि वास्तविकता यह है कि उनकी सरकार ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी। अगर प्रशासन ने समय रहते आवश्यक कदम उठाए होते, तो इतनी बड़ी त्रासदी से बचा जा सकता था।
भाजपा और योगी आदित्यनाथ पर यह आरोप भी है कि वे धार्मिक आयोजनों को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा उनके लिए प्राथमिकता नहीं रही। महाकुंभ जैसे बड़े आयोजन में उचित योजना और प्रबंधन का अभाव न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि सरकार की प्राथमिकताएं कहीं और हैं।
इस घटना ने भाजपा सरकार की छवि पर गहरे सवाल खड़े किए हैं। विपक्षी नेता और कई सामाजिक कार्यकर्ता लगातार योगी आदित्यनाथ से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, यह कहते हुए कि जब प्रशासनिक विफलता इतनी स्पष्ट हो, तो नैतिक जिम्मेदारी लेना अनिवार्य है। इस संदर्भ में, योगी आदित्यनाथ को यह समझने की आवश्यकता है कि अपने पद की जिम्मेदारी का सही तरीके से निर्वहन करना ही उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
बता दें की यह जरूरी है कि योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार इस दुखद घटना से कोई सबक लें और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। यदि भाजपा सचमुच जनता की भलाई चाहती है, तो उन्हें अपनी नीतियों और कार्यों को सही दिशा में मोड़ते हुए अपनी जिम्मेदारियों को स्वीकार करना होगा।