दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बाद राजधानी में सरकार गठन को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। सोमवार को पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि दिल्ली के नए मुख्यमंत्री का चयन नवनिर्वाचित भाजपा विधायकों में से ही किया जाना चाहिए।
5 फरवरी को हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 70 में से 48 सीटों पर जीत दर्ज की, जिससे अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) को सत्ता से बाहर कर दिया। इस जीत के साथ ही भाजपा ने दिल्ली में 26 वर्षों के बाद सत्ता में वापसी की है।
भाजपा सांसद योगेंद्र चंदोलिया ने कहा,
“नए मुख्यमंत्री का चयन नवनिर्वाचित विधायकों में से ही किया जाना चाहिए। पार्टी के पास अनुभवी और योग्य नेताओं की कमी नहीं है, जिनमें दो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, एक राष्ट्रीय सचिव और कई वरिष्ठ नेता शामिल हैं, जिनके पास लंबा राजनीतिक अनुभव है।”
एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता ने भी इस बात पर जोर दिया कि मुख्यमंत्री का पद किसी विधायक को सौंपना जनता के जनादेश का सम्मान होगा। उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता विजय कुमार मल्होत्रा का उदाहरण देते हुए कहा कि पार्टी के भीतर पहले भी ऐसे फैसले लिए जा चुके हैं।
भाजपा नेताओं के अनुसार, सरकार गठन की प्रक्रिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 फरवरी के आसपास विदेशी दौरे से लौटने के बाद शुरू होगी। वहीं, दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने रविवार को उपराज्यपाल से पार्टी विधायकों के साथ बैठक के लिए समय मांगा है।
मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार:
भाजपा के भीतर संभावित चेहरों को लेकर चर्चाएं तेज हैं। जाति, समुदाय, क्षेत्रीय संतुलन और अनुभव के आधार पर कई नाम चर्चा में हैं।
- परवेश वर्मा: भाजपा के जाट चेहरे, जिन्होंने नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल को हराया।
- विजेंद्र गुप्ता और सतीश उपाध्याय: पूर्व दिल्ली भाजपा अध्यक्ष, जिनका संगठन में मजबूत प्रभाव है।
- आशीष सूद और पवन शर्मा: क्रमशः जनकपुरी और उत्तम नगर से निर्वाचित विधायक।
- रेखा गुप्ता और शिखा राय: महिला विधायकों के रूप में भी पार्टी अपना दांव खेल सकती है।
- अभय वर्मा: लक्ष्मी नगर से विधायक और पूर्वांचली समुदाय के मजबूत नेता।
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार, भाजपा विधायक दल की बैठक की तारीख अभी तय नहीं हुई है, जिसमें विधानसभा में नेता का चुनाव किया जाएगा।
दिल्ली की राजनीति में भाजपा की यह जीत एक बड़ा राजनीतिक बदलाव है, जो अगले कुछ वर्षों के लिए राजधानी के राजनीतिक परिदृश्य को नया स्वरूप दे सकती है।