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Thursday, March 13, 2025

Budget 2025: उद्योग संगठनों ने बजट की पूर्व बैठक में आयकर कटौती, ईंधन शुल्क में कटौती की मांग की

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2024 के 30 दिसंबर को विभिन्न उद्योग संगठनों के प्रतिनिधि वित्त मंत्री के साथ अपनी पारंपरिक पूर्व-बजट बैठक के लिए एकत्र हुए, ताकि 2025-26 के केंद्रीय बजट से पहले महत्वपूर्ण आर्थिक उपायों पर चर्चा की जा सके। इस बैठक में कई प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ, जिनमें व्यक्तिगत आयकर दरों में कटौती, ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कमी, और रोजगार सृजन में सहायक क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया। यह बैठक एक प्रकार से सरकार और उद्योगों के बीच संवाद का एक महत्वपूर्ण अवसर था, जिसमें न केवल वर्तमान आर्थिक स्थिति की समीक्षा की गई, बल्कि आगामी बजट के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए।

प्रमुख प्रस्ताव

1. आयकर राहत की आवश्यकता

बैठक में सबसे प्रमुख मुद्दा व्यक्तिगत आयकर दरों में कटौती का था। उद्योग प्रतिनिधियों ने यह अनुरोध किया कि वेतनभोगी वर्ग, विशेष रूप से जो प्रति वर्ष 20 लाख रुपये तक कमाते हैं, उनके लिए आयकर दरों में कटौती की जाए। भारतीय उद्योग महासंघ (CII) के अध्यक्ष संजीव पुरी ने बताया कि यदि सरकार इस वर्ग के लिए आयकर दरों में कमी करती है, तो इससे मध्यवर्गीय परिवारों की डिस्पोजेबल आय (उपलब्ध आय) में वृद्धि होगी। इससे न केवल उपभोक्ता खर्च में वृद्धि होगी, बल्कि व्यापार और उपभोक्ता सामानों की बिक्री में भी बढ़ोतरी होगी, जिससे कर राजस्व में वृद्धि हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे समग्र अर्थव्यवस्था में एक सकारात्मक चक्रीय प्रभाव पैदा होगा, क्योंकि मध्यवर्गीय परिवारों के पास अधिक पैसा होगा, जिसे वे सामान और सेवाओं की खरीददारी में खर्च करेंगे।

2. ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कमी

बैठक में एक और महत्वपूर्ण मुद्दा ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कमी था। उद्योग नेताओं ने सरकार से पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती करने की मांग की। वर्तमान में पेट्रोल पर लगभग 21% और डीजल पर 18% उत्पाद शुल्क लिया जाता है, जो खुदरा कीमत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में मई 2022 के बाद लगभग 40% की गिरावट आई है, लेकिन उत्पाद शुल्क में कोई बदलाव नहीं हुआ है। उद्योग प्रतिनिधियों का कहना है कि अगर सरकार इन शुल्कों में कमी करती है, तो इससे महंगाई दबाव कम होगा और घरों के खर्च में राहत मिलेगी। इसके अलावा, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी से परिवहन और लॉजिस्टिक्स लागत कम होगी, जिससे उत्पादन और व्यापार की लागत में भी कमी आएगी। यह कदम विशेष रूप से उन उद्योगों के लिए लाभकारी होगा जो लॉजिस्टिक्स पर भारी निर्भर करते हैं, जैसे कि निर्माण और निर्यात उद्योग।

3. रोजगार सृजन में सहायक क्षेत्रों को बढ़ावा देना

बैठक में उद्योग नेताओं ने रोजगार सृजन वाले क्षेत्रों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। विशेष रूप से वस्त्र, फुटवियर, पर्यटन और फर्नीचर जैसे क्षेत्रों को रोजगार सृजन के लिए महत्वपूर्ण माना गया। संजीव पुरी ने बताया कि इन क्षेत्रों को बढ़ावा देने से बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं, और इससे भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भी एकीकृत किया जा सकता है। इन उद्योगों में पारंपरिक रूप से बड़े पैमाने पर कम से मध्य स्तर के श्रमिकों की आवश्यकता होती है, और यह ग्रामीण क्षेत्रों और अर्ध-शहरी इलाकों में बेरोजगारी और गरीबी से निपटने में मदद कर सकता है। इसके साथ ही, सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों (MSMEs) के लिए भी समर्थन की आवश्यकता की बात उठाई गई, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं और जो रोजगार सृजन तथा नवाचार में अहम भूमिका निभाते हैं।

वैश्विक आर्थिक चुनौतियाँ

बैठक में यह भी चर्चा की गई कि वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ भारत के बाजार को कैसे प्रभावित कर रही हैं। उद्योग नेताओं ने “वैश्विक डंपिंग” के मुद्दे को उठाया, खासकर चीन से। उन्होंने कहा कि चीन अपने उत्पादों का अतिरिक्त स्टॉक भारतीय बाजारों में सस्ते दामों पर भेज रहा है, जिससे स्थानीय उद्योगों को नुकसान हो रहा है। इस “डंपिंग” से भारतीय उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो रहा है और इससे महंगाई और खाद्य सुरक्षा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। FICCI के उपाध्यक्ष विजय सांकर ने इस बात पर जोर दिया कि इस मुद्दे को हल करना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है। उनका कहना था कि यह वैश्विक दबाव स्थानीय उद्योगों के लिए संकट पैदा कर रहा है, और इससे निपटने के लिए प्रभावी नीतियाँ बनाई जानी चाहिए।

अन्य सुझाव

इसके अलावा, उद्योग प्रतिनिधियों ने कई अन्य उपायों का भी सुझाव दिया, जिनसे व्यापारिक माहौल में सुधार हो सकता है और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है।

  1. GST की सरलता: उद्योग नेताओं ने GST के ढांचे को सरल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उनका कहना था कि GST अनुपालन में अधिक जटिलताएँ हैं, जिससे छोटे और मझोले व्यापारियों के लिए समस्या उत्पन्न होती है। अगर GST को सरल बनाया जाए तो इससे व्यापारियों के लिए अनुपालन आसान हो सकता है, और समग्र रूप से व्यापार में दक्षता बढ़ सकती है।
  2. न्यूनतम वेतन वृद्धि: CII ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) जैसे सरकारी कार्यक्रमों के तहत दैनिक न्यूनतम वेतन में वृद्धि करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने यह सुझाव दिया कि यह वेतन 267 रुपये से बढ़ाकर 375 रुपये प्रति दिन किया जाए। इससे निम्न आय वाले परिवारों को सहायता मिलेगी और ग्रामीण क्षेत्रों में मांग को बढ़ावा मिलेगा, जो समग्र अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद होगा।
  3. उपभोक्ता वाउचर योजना: कुछ उद्योग प्रतिनिधियों ने कम आय वाले परिवारों के लिए उपभोक्ता वाउचर की शुरुआत करने का सुझाव दिया। यह वाउचर उनके पास अतिरिक्त खर्च के लिए एक साधन हो सकता है, जिससे उपभोक्ता मांग में वृद्धि हो और आर्थिक गतिविधियों को गति मिले।
  4. MSMEs के लिए समर्थन: असोचैम के अध्यक्ष संजय नायर ने MSMEs की समस्याओं पर प्रकाश डाला, खासकर क्रेडिट प्रवाह और जटिल पंजीकरण प्रक्रियाओं के मुद्दे पर। उन्होंने सूक्ष्म और लघु उद्योगों के लिए प्रक्रिया को सरल बनाने और टैक्स कटौती प्रणालियों जैसे TDS को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

निष्कर्ष

2024 की 30 दिसंबर को हुई पूर्व-बजट बैठक यह दर्शाती है कि उद्योग संगठन और सरकार दोनों आर्थिक सुधारों के लिए प्रतिबद्ध हैं। बैठक में उठाए गए प्रमुख मुद्दे, जैसे आयकर में राहत, ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कमी, रोजगार सृजन में सहायक क्षेत्रों को बढ़ावा देना, और MSMEs को समर्थन, इन सभी से यह स्पष्ट होता है कि भारत के उद्योग और व्यापारिक समुदाय को वर्तमान आर्थिक चुनौतियों का सामना करने के लिए नीति सुधारों की आवश्यकता है। आगामी केंद्रीय बजट में इन मुद्दों पर विचार किए जाने की उम्मीद है, जो भारत की आर्थिक वृद्धि को तेज करने में मदद करेगा और वैश्विक दबावों के बावजूद भारत की आर्थिक ताकत को मजबूत करेगा।

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