अपने पहले दिन अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में, डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसका उद्देश्य बर्थराइट सिटिजनशिप को समाप्त करना है। यह कदम न केवल तीव्र बहस का कारण बना है, बल्कि इससे कानूनी लड़ाई भी छिड़ने की संभावना है।
यह नीति उन बच्चों को स्वचालित अमेरिकी नागरिकता से वंचित करने का प्रस्ताव करती है, जिनके माता-पिता बिना दस्तावेज़ वाले अप्रवासी हैं। यह अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन की स्पष्टीकरण को चुनौती देता है, जो स्पष्ट रूप से “अमेरिका में जन्मे या प्राकृतिक रूप से नागरिक बने सभी व्यक्तियों” को नागरिकता प्रदान करता है।
क्यों उठाया गया यह कदम?
प्रशासन का तर्क है कि यह बदलाव अवैध आप्रवासन को रोकने और “बर्थ टूरिज्म” जैसी प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए आवश्यक है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह कदम असंवैधानिक है और इससे लाखों अप्रवासी परिवारों और कमजोर समुदायों को नुकसान होगा।
भारतीय-अमेरिकियों पर प्रभाव
अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी समुदाय, जो सबसे बड़े प्रवासी समूहों में से एक है, इस नीति से सबसे अधिक प्रभावित हो सकता है। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के अनुसार, अमेरिका में लगभग 50 लाख भारतीय-अमेरिकी हैं, जिनमें से केवल 34% ही अमेरिकी जन्मे नागरिक हैं। कई भारतीय प्रवासी एच-1बी वीज़ा पर काम करते हैं, और उनके बच्चों को इस नई नीति के तहत स्वचालित नागरिकता का अधिकार नहीं मिलेगा।
कानूनी लड़ाई का ऐलान
अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) और अप्रवासी अधिकार संगठनों ने इस आदेश की निंदा करते हुए इसे असंवैधानिक बताया है। एसीएलयू ने प्रशासन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की घोषणा की है। उनके बयान में कहा गया, “14वें संशोधन की भाषा स्पष्ट है। यह कार्यकारी आदेश कमजोर समुदायों और समानता व न्याय के सिद्धांतों पर सीधा हमला है।”
आगे की राह और संभावित असर
यह नीति आदेश जारी होने के 30 दिनों बाद प्रभावी होने की संभावना है। “बर्थ टूरिज्म” पर रोक लगाने के लिए इसे महत्वपूर्ण कदम बताया जा रहा है। हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायालय इस विवाद में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। इस नीति का अंतिम फैसला न केवल अप्रवासन सुधारों को प्रभावित करेगा, बल्कि यह अमेरिका में संवैधानिक अधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन पर भी सवाल खड़ा करेगा।