बुधवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता की। यह बैठक सेंट्रल सेक्रेटिएट में बुलाई गई थी ताकि प्रस्तावित परिसीमन पर चर्चा की जाती। बैठक में सर्वसम्मति से केंद्र सरकार से कहा गया कि 1971 की जनगणना को अगले 30 साल तक परिसीमन का आधार बनाया जाए। स्टालिन को डर है कि परिसीमन से दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व लोकसभा में कमजोर हो जाएगा। उनका कहना है कि दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या को नियंत्रित करने में सक्षमता दिखाई है।
परिसीमन में इसका लाभ मिलेगा। सीटें बढ़ जाएंगी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि परिसीमन से किसी भी राज्य की सीट कम नहीं होगी। स्टालिन, हालांकि, उन्हें सुनने को तैयार नहीं हैं। परिसीमन के साथ ही उन्हें त्रिभाषा फार्मूले का विरोध करना पड़ा है। आइए देखते हैं कि स्टालिन परिसीमन और हिंदी भाषा का विरोध करके क्या करना चाहते हैं।
एआईडीएमके, कांग्रेस, अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेट्री कषगम (टीवीके) और वाम दल के प्रतिनिधि सर्वदलीय बैठक में उपस्थित हुए। हालाँकि, बीजेपी, तमिल राष्ट्रवादी एनटीके और जीके वासन की तमिल मनीला कांग्रेस ने बैठक को सर्वदलीय नहीं बनाया। स्टालिन ने बैठक में ज्वाइंट एक्शन कमेटी बनाने का सुझाव दिया। दक्षिण भारत के राजनीतिक दलों और संसद सदस्यों को इसमें शामिल किया जाएगा, उन्होंने कहा। यह कमेटी ही लोगों को जागरूक करेगी और परिसमीन की लड़ाई को आगे बढ़ाएगी।
जनसंख्या के आधार पर परिसीमन का सर्वसम्मति से विरोध हुआ। बैठक ने 1971 की जनगणना को अगले 30 वर्षों तक परिसीमन का आधार मानने की मांग की। बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि तमिलनाडु की अभी संसद में 7.18% हिस्सेदारी को किसी भी हाल में बदलने की जरूरत नहीं है।
तमिलनाडु परिसीमन को विरोध करता है। दक्षिण भारत में कांग्रेस शासित कर्नाटक और तेलंगाना भी इसका विरोध करते हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि परिसीमन पर अभी आधिकारिक रूप से कुछ नहीं हुआ है, लेकिन केंद्र सरकार सभी संबंधित पक्षों से समय आने पर बातचीत करेगी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों तमिलनाडु के दौरे पर दक्षिण भारत को आश्वस्त करते हुए कहा कि किसी भी राज्य में एक भी सीट कम नहीं होगी। शाह के इस बयान के बाद भी स्टालिन परिसीमन के खिलाफ है।
जनसंख्या नियंत्रण से तमिलनाडु को घाटा होगा?
स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु ने जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान दिया और सफल भी रहा, लेकिन आज यही सफलता उसकी दुर्दशा का कारण है। उनका दावा है कि तमिलनाडु की जनसंख्या नीति ही उसके लोकसभा प्रतिनिधित्व को कम कर सकती है। यही कारण है कि वह अब राज्य के युवा लोगों से अधिक से अधिक जन्म देने की अपील कर रहे हैं। स्टालिन और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने भी जनसंख्या बढ़ाने का समर्थन किया है।
Thankful to all parties that stood together as a single unit in the All-party Meeting convened by the Government of Tamil Nadu, setting aside the political differences to send a clear and uncompromising message on the unjust #Delimitation initiative.
The resolutions passed today… pic.twitter.com/d3fZnKdA4z
— M.K.Stalin (@mkstalin) March 5, 2025
नायडू ने जनसंख्या वृद्धि का अब समर्थन किया है। उनका कहना है कि दक्षिणी राज्यों में बुढ़ापे की समस्या है। यह समस्या सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश में नहीं है। उनका कहना था कि वे पहले परिवार नियोजन का समर्थन करते थे, लेकिन अब जनसंख्या वृद्धि का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को अधिक प्रोत्साहन मिलना चाहिए। नाडयू ने परिसीमन से इसे नहीं जोड़ा है। उन्होंने कहा कि यह जनसंख्या प्रबंधन से अलग है। आज की राजनीतिक बहसों से इसे नहीं जोड़ना चाहिए।