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Thursday, March 13, 2025

भारत में Gen Z के लिव-इन रिश्तों में बढ़ती हिंसा: एक सामाजिक समस्या – जानिए डॉ. संप्रत्य पाठक के साथ

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हाल के दिनों में खबरों में एक चिंताजनक ट्रेंड उभरकर सामने आया है, जिसमें युवा जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप्स में हिंसा का शिकार हो रहे हैं। यह बढ़ता हुआ रुझान हमारे समाज के सामने एक गहरी चुनौती प्रस्तुत करता है, खासकर जब बात जेन-ज़ेड (Generation Z) की आती है, जो प्रेम और रिश्तों को लेकर कई दवाबों का सामना कर रहे हैं।

जेनज़ेड और लिवइन रिश्ते: एक जटिल समीकरण

भारत में, जहाँ अभी भी परंपराओं और मान्यताओं का काफी महत्व है, युवा पीढ़ी की बड़ी संख्या अपने प्रेमी-प्रेमिका के साथ “लिव-इन रिलेशनशिप्स” में शामिल हो रही है। हालांकि, यह पहलू भारतीय समाज में पूरी तरह से स्वीकृत नहीं हुआ है और इसके कारण कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। सोशल मीडिया, जैसे इंस्टाग्राम या व्हाट्सएप, पर रिश्तों की तकरार और व्यक्तिगत संघर्ष बढ़ जाते हैं और कई बार यह हिंसा के रूप में परिणत हो जाते हैं। इससे न केवल रिश्तों की पवित्रता खत्म होती है, बल्कि कभी-कभी खून-खराबा भी हो जाता है।

जेनज़ेड के प्रेम की पीड़ा

हाल के दिनों में, ऐसे कई मामलों की खबरें आई हैं, जिनमें युवा जोड़े लिव-इन सेटअप्स में खूनी संघर्षों में उलझे हैं। यह दिल दहला देने वाली स्थिति है, जहां हमारे राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के साथ ऐसा हो रहा है। इस हिंसा के पीछे कई कारण हैं। समाज में “एकल” रहने का डर और रिश्ते में होने का दबाव, युवाओं को गलत दिशा में ले जा रहा है। इसके अलावा, युवाओं के मन में अभी भी मानसिक विकास का काम चल रहा है, खासकर प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स, जो 20 के दशक के मध्य तक विकसित होता है और जो निर्णय लेने की क्षमता और आवेग नियंत्रण पर असर डालता है। घर में यदि किसी को अस्वस्थ रिश्ते मिलते हैं, तो वे भी अपनी रोमांटिक लाइफ में उन्हीं पैटर्न्स को अपना सकते हैं।

बहुत से मामलों में, युवाओं को रिश्ते के दबाव से निपटने के लिए मादक पदार्थों का सेवन करने की आदत लग जाती है, जो झगड़ों और मानसिक अशांति को बढ़ावा देती है। इसके अलावा, कई बार दोस्त भी दूसरों को नासमझ रिश्तों में रहने की सलाह देते हैं ताकि सामाजिक छवि बनी रहे। भारत जैसे पारंपरिक समाज में, युवा अक्सर toxic रिश्तों में रहने को मजबूर हो जाते हैं ताकि समुदाय का न्यायिक नजरिया उनसे न हो। इस कम उम्र में अपनी भावनाओं को सही तरीके से समझना और निपटना बहुत कठिन होता है, और इस कारण impulsive निर्णय लिए जाते हैं, जो हिंसक प्रतिक्रियाओं में बदल जाते हैं।

समाज में बदलाव की आवश्यकता

समाज को चाहिए कि वह लिव-इन रिश्तों को पूरी तरह से स्वीकार करे और इसके साथ जुड़ी सामाजिक कुरीतियों और कलंक को समाप्त करे। स्कूलों और कॉलेजों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता और संघर्ष समाधान की शिक्षा देना बेहद जरूरी है, क्योंकि छात्र-छात्राएं अपने रिश्तों में कई समस्याओं का सामना कर सकते हैं, जो उनके शैक्षिक प्रदर्शन को भी प्रभावित कर सकती हैं। रिश्तों के मुद्दों पर मदद लेना सामान्य होना चाहिए, और यह समझना जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से मदद लेना कोई बुरी बात नहीं है। कपल्स थेरपी भी कई संघर्षों को हल कर सकती है और बेहतर समाधान दे सकती है।

निष्कर्ष

युवाओं के अस्वस्थ रिश्तों के पीछे मुख्य कारण असामान्य परवरिश, विषाक्त संचार, अपरिपक्वता और अवास्तविक अपेक्षाएँ हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए हमें भावनात्मक बुद्धिमत्ता, सशक्तिकरण कार्यक्रमों, परिवारों की भागीदारी और विषाक्त रिश्तों को खत्म करने की आवश्यकता है। प्यार या लिव-इन रिश्तों के साथ जुड़े कलंक को मिटाना बहुत जरूरी है, ताकि युवा हिंसा और आक्रामकता के बजाय स्वस्थ और खुशहाल रिश्तों की ओर अग्रसर हो सकें।

यदि समाज में इन पहलुओं पर सुधार किया जाता है, तो हम एक ऐसी दुनिया देख सकते हैं, जहां युवा प्रेम को समझदारी से जीते हैं और रिश्तों में सकारात्मकता लाते हैं, बजाय इसके कि वे गुस्से और हिंसा का शिकार हों।

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Sampratya Pathak
Sampratya Pathak
डॉ. समप्रत्य पाठक जयपुर के एक मनोवैज्ञानिक निवासी डॉक्टर हैं। वे वर्तमान में जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा के क्षेत्र में प्रशिक्षण ले रहे हैं। डॉ. पाठक ने मनोवैज्ञानिक मुद्दों की जटिलताओं को समझने और उन्हें प्रभावी ढंग से व्यक्त करने में विशेषज्ञता हासिल की हैं।
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